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'SING' - LOCKDOWN DIARY (RZ PAID STORY TASK) -संगी

'SING' - LOCKDOWN DIARY
(RZ PAID STORY TASK)
-संगीता पाटीदार 'धुन'







कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें 👇  'सिंग' - Lockdown Diary

Dear Smile (Diary),

तुम्हें यह नाम याद है? मैंने तुम्हें अपनी बुक dedicate की थी और अपने इसी नाम की तरह मुस्कुराकर, "क्या तुम भी!" बोलकर बात वहीं ख़तम कर दी। इतने लंबे लॉकडाउन की अफरा-तफरी के बाद अब मैं तुमसे मिली। तुम्हारे चेहरे पर वो पहले वाली मुस्कान नहीं थी, बहुत थकी हुई भी लग रही हो, ऐसा क्या हुआ? तुम तो कभी हारकर बैठने वालों में से नहीं हो। ह्म्म्! तुमसे कोई बात निकलवाना बहुत मुश्क़िल है। कोई बात नहीं, मैं भी हार नहीं मानूँगी, आख़िर तुम्हीं से तो सीखा है मैंने भी। 

अच्छा सुनो! मैं ही तुम्हें कुछ बताती हूँ, इस लॉकडाउन ने मुझे भी बहुत परेशान किया है। तुम्हें 'सिंग' याद है? हाँ-हाँ! होगा ही, इतना लड़ती जो हो उससे, मुझसे कम भाव जो देता है तुम्हें। मेरे साथ इतनी मस्ती करता है और तुम्हें देखकर ही वो शरीफ बन कोना पकड़ बैठ जो जाता है। जब वो पहली बार घर आया था, तो एक छोटे से हरे पत्ते जैसा लग रहा था, हम कितना डर रहे थे उसे उठाने और हाथ लगाने से भी। जिसने उसे गिफ्ट किया था, उसने कितना डरा भी तो दिया था। धीरे-धीरे वो घुल-मिल गया, सब समझने लगा, हाथ पहचानने लगा और मस्ती तो इतनी कि संभालना मुश्क़िल हो जाता था कभी-कभी। उसे धूप और अंगूर कितने पसंद हैं। तुम्हें कितना गुस्सा आता था कि तुम्हारे हाथ से कुछ नहीं खाता है, देखते ही भाग जाता है।
'SING' - LOCKDOWN DIARY
(RZ PAID STORY TASK)
-संगीता पाटीदार 'धुन'







कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें 👇  'सिंग' - Lockdown Diary

Dear Smile (Diary),

तुम्हें यह नाम याद है? मैंने तुम्हें अपनी बुक dedicate की थी और अपने इसी नाम की तरह मुस्कुराकर, "क्या तुम भी!" बोलकर बात वहीं ख़तम कर दी। इतने लंबे लॉकडाउन की अफरा-तफरी के बाद अब मैं तुमसे मिली। तुम्हारे चेहरे पर वो पहले वाली मुस्कान नहीं थी, बहुत थकी हुई भी लग रही हो, ऐसा क्या हुआ? तुम तो कभी हारकर बैठने वालों में से नहीं हो। ह्म्म्! तुमसे कोई बात निकलवाना बहुत मुश्क़िल है। कोई बात नहीं, मैं भी हार नहीं मानूँगी, आख़िर तुम्हीं से तो सीखा है मैंने भी। 

अच्छा सुनो! मैं ही तुम्हें कुछ बताती हूँ, इस लॉकडाउन ने मुझे भी बहुत परेशान किया है। तुम्हें 'सिंग' याद है? हाँ-हाँ! होगा ही, इतना लड़ती जो हो उससे, मुझसे कम भाव जो देता है तुम्हें। मेरे साथ इतनी मस्ती करता है और तुम्हें देखकर ही वो शरीफ बन कोना पकड़ बैठ जो जाता है। जब वो पहली बार घर आया था, तो एक छोटे से हरे पत्ते जैसा लग रहा था, हम कितना डर रहे थे उसे उठाने और हाथ लगाने से भी। जिसने उसे गिफ्ट किया था, उसने कितना डरा भी तो दिया था। धीरे-धीरे वो घुल-मिल गया, सब समझने लगा, हाथ पहचानने लगा और मस्ती तो इतनी कि संभालना मुश्क़िल हो जाता था कभी-कभी। उसे धूप और अंगूर कितने पसंद हैं। तुम्हें कितना गुस्सा आता था कि तुम्हारे हाथ से कुछ नहीं खाता है, देखते ही भाग जाता है।