पल्लव की डायरी दीवालें बस कलेंडर बदलती दिन महीना साल गुजर जाते है जीवन एक पहेली की तरह है उलझन में हम सब उलझ जाते है आईने के समाने जब चेहरा लाते झुर्रियों के बल उम्र गवाते है आंकलन अगर करे बीते वर्षों का पाने से ज्यादा गवाते है बहकते रहते इस कालचक्र के हाथों में कठपुतली भर जैसे नाच नचाते है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #worldpostday दीवालें बस कलेंडर बदलती