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"संवाद" अपने प्रेमी के नाम का एक कांटा भी नहीं हो

"संवाद"

अपने प्रेमी के नाम का एक कांटा भी नहीं होता स्त्री के शरीर में फिर भी वो पुर्ण रुप से अपने प्रेमी के लिए समर्पित होती है, और अपनी प्रेमिका से मिलने की एक उम्मीद भी नहीं होती, प्रेमी फिर भी उसके हीत में सारे निर्णय लेता है। 

अनुशीर्षक पढ़ें... "संवाद"

राधा:- जीवन में पति/पत्नी और प्रेमी में से किसका स्थान श्रेष्ठ है और क्यों?
कृष्ण:- निश्चित रूप से प्रेमी का।
राधा:- किन्तु ऐसा क्यु?
कृष्ण:- विवाह के साथ जो रिश्ता होता है, उसे निभाने के लिए स्त्री व पुरुष दोनों ही ईश्वर को साक्षी मान कर, खुद की खुशीयों की कुर्बानी के साथ भी परिवार की और समाज की खुशियों के लिए सब कुछ सह कर, चाहे या अनचाहे सभी कार्य में एक दुसरे का साथ देने के लिए बाध्य होते है । दायित्व अंततः एक दायित्व होता है , जिसके लिए स्त्री व पुरुष ने ईश्वर को साक्षी मानकर इस दायित्व को निभाने की जिम्मेदारी उठाई है ।
जबकी प्रेम में ऐसी कोई बंदिश नहीं होती । प्रेम कभी बंदिशों या सामाजिक दायित्व की बेडीयों में फलीभुत नहीं होता । सिर्फ अपने प्रेमी के अधर पर मुस्कराहट के अलावा कोई स्वार्थ नहीं, त्याग करने की प्रतिस्पर्धा। व्यक्ति खुद से ज्यादा अपने प्रियतम/प्रियतमा का ख्याल करता है। बिना किसी ईश्वर और समाज को साक्षी रखकर। जैसे मां अपने बच्चों के लिए, प्रेमी अपने प्रेमी के लिए और भक्त आपने भगवान के लिए नि: स्वार्थ समर्पण करता है।
अपने प्रेमी के नाम का एक कांटा भी नहीं होता स्त्री के शरीर में फिर भी वो पुर्ण रुप से अपने प्रेमी के लिए समर्पित होती है, और अपनी प्रेमिका से मिलने की एक उम्मीद भी नहीं होती, प्रेमी फिर भी उसके हीत में सारे निर्णय लेता है। क्युकी प्रेम रुह से होता है और दिखावा शरीर से। सब रीति रिवाजों से परे वो एक दुसरे के हुए बिना भी एक दुसरे के होते हैं। और दुसरी तरफ महज दिखावे और परम्पराओं के कारण एक दुसरे के सब कुछ होते हुए भी वो एक दूसरे के लिए महज़ जिस्म से ज्यादा कुछ नहीं रह जाते ।
"संवाद"

अपने प्रेमी के नाम का एक कांटा भी नहीं होता स्त्री के शरीर में फिर भी वो पुर्ण रुप से अपने प्रेमी के लिए समर्पित होती है, और अपनी प्रेमिका से मिलने की एक उम्मीद भी नहीं होती, प्रेमी फिर भी उसके हीत में सारे निर्णय लेता है। 

अनुशीर्षक पढ़ें... "संवाद"

राधा:- जीवन में पति/पत्नी और प्रेमी में से किसका स्थान श्रेष्ठ है और क्यों?
कृष्ण:- निश्चित रूप से प्रेमी का।
राधा:- किन्तु ऐसा क्यु?
कृष्ण:- विवाह के साथ जो रिश्ता होता है, उसे निभाने के लिए स्त्री व पुरुष दोनों ही ईश्वर को साक्षी मान कर, खुद की खुशीयों की कुर्बानी के साथ भी परिवार की और समाज की खुशियों के लिए सब कुछ सह कर, चाहे या अनचाहे सभी कार्य में एक दुसरे का साथ देने के लिए बाध्य होते है । दायित्व अंततः एक दायित्व होता है , जिसके लिए स्त्री व पुरुष ने ईश्वर को साक्षी मानकर इस दायित्व को निभाने की जिम्मेदारी उठाई है ।
जबकी प्रेम में ऐसी कोई बंदिश नहीं होती । प्रेम कभी बंदिशों या सामाजिक दायित्व की बेडीयों में फलीभुत नहीं होता । सिर्फ अपने प्रेमी के अधर पर मुस्कराहट के अलावा कोई स्वार्थ नहीं, त्याग करने की प्रतिस्पर्धा। व्यक्ति खुद से ज्यादा अपने प्रियतम/प्रियतमा का ख्याल करता है। बिना किसी ईश्वर और समाज को साक्षी रखकर। जैसे मां अपने बच्चों के लिए, प्रेमी अपने प्रेमी के लिए और भक्त आपने भगवान के लिए नि: स्वार्थ समर्पण करता है।
अपने प्रेमी के नाम का एक कांटा भी नहीं होता स्त्री के शरीर में फिर भी वो पुर्ण रुप से अपने प्रेमी के लिए समर्पित होती है, और अपनी प्रेमिका से मिलने की एक उम्मीद भी नहीं होती, प्रेमी फिर भी उसके हीत में सारे निर्णय लेता है। क्युकी प्रेम रुह से होता है और दिखावा शरीर से। सब रीति रिवाजों से परे वो एक दुसरे के हुए बिना भी एक दुसरे के होते हैं। और दुसरी तरफ महज दिखावे और परम्पराओं के कारण एक दुसरे के सब कुछ होते हुए भी वो एक दूसरे के लिए महज़ जिस्म से ज्यादा कुछ नहीं रह जाते ।