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कोरोना और जीवन सरकार का पहला क़दम बहुत शानदार था।ज

कोरोना और जीवन

सरकार का पहला क़दम बहुत शानदार था।जब मोदी जी ने पूरे देश को संबोधित करते हुए कहा कि जो जहाँ है वहीं रुके। लोगों ने उनकी बात को माना भी। यही वो दौर था जब हमने कोरोना को थाम दिया था। कोरोना केवल देश में बाहर से आए लोगों तक ही सीमित था। सब कुछ कंट्रोल में था और नहीं था तो बस मीडिया। अब शुरू हुआ टीआरपी का खेल और लोगों को डराने का धंधा आग लगा दी गई मौत का ख़ौफ़ लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर करने लगा। अब लोगों को मौत छोटी चीज़ लगने लगी और वह एक साथ सड़कों पर निकल बैठे। सोशल मीडिया में फैले वाइरल वीडियो आग में घी का काम कर गए। नतीजा सबके सामने है।

 जब किसी परिवार अथवा देश का मुखिया अपने सहयोगियों की अक्षम्य लापरवाही के लिए देश/परिवार से क्षमा मांगे, इससे बड़ी शर्म की बात और हो भी क्या सकती है। शर्म तो इस बात पर भी आती है कि प्रधानमंत्री ने लापरवाही पर 22 मार्च को भी नाराजगी प्रकट की थी। नोएडा में जाम लगा था। दिल्ली तथा चार राज्यों में तो कर्फ्यू लगाना पड़ गया था। राज्यों को सख्ती से निपटने के आदेश भी जारी किए थे।
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प्रश्न यह है कि फिर भी अधिकारी हिले नहीं। राजस्थान में तो कार-बाइक तक पर रोक लगा दी गई। तब से आज तक कोरोना की गंभीरता तथा कामगारों के पलायन का जो नजारा सामने आया, उसने प्रशासन के निकम्मेपन की भी पोल खोल दी और सरकारों की प्रशासन पर प्रभावहीनता को भी उजागर कर दिया।

अगले दिन 25 मार्च को मजदूरों ने गांव की ओर पैदल कूच कर दिया। एक साथ हजारों-हजार और अधिकारी ‘वर्क फ्रॉम होम’ की तर्ज पर। किसी की नींद नहीं उड़ी।
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प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को रात 8 बजे पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा करते हुए कहा था कि ‘लापरवाही की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। जो जहां है, वहीं रहे’।
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कोरोना और जीवन

सरकार का पहला क़दम बहुत शानदार था।जब मोदी जी ने पूरे देश को संबोधित करते हुए कहा कि जो जहाँ है वहीं रुके। लोगों ने उनकी बात को माना भी। यही वो दौर था जब हमने कोरोना को थाम दिया था। कोरोना केवल देश में बाहर से आए लोगों तक ही सीमित था। सब कुछ कंट्रोल में था और नहीं था तो बस मीडिया। अब शुरू हुआ टीआरपी का खेल और लोगों को डराने का धंधा आग लगा दी गई मौत का ख़ौफ़ लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर करने लगा। अब लोगों को मौत छोटी चीज़ लगने लगी और वह एक साथ सड़कों पर निकल बैठे। सोशल मीडिया में फैले वाइरल वीडियो आग में घी का काम कर गए। नतीजा सबके सामने है।

 जब किसी परिवार अथवा देश का मुखिया अपने सहयोगियों की अक्षम्य लापरवाही के लिए देश/परिवार से क्षमा मांगे, इससे बड़ी शर्म की बात और हो भी क्या सकती है। शर्म तो इस बात पर भी आती है कि प्रधानमंत्री ने लापरवाही पर 22 मार्च को भी नाराजगी प्रकट की थी। नोएडा में जाम लगा था। दिल्ली तथा चार राज्यों में तो कर्फ्यू लगाना पड़ गया था। राज्यों को सख्ती से निपटने के आदेश भी जारी किए थे।
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प्रश्न यह है कि फिर भी अधिकारी हिले नहीं। राजस्थान में तो कार-बाइक तक पर रोक लगा दी गई। तब से आज तक कोरोना की गंभीरता तथा कामगारों के पलायन का जो नजारा सामने आया, उसने प्रशासन के निकम्मेपन की भी पोल खोल दी और सरकारों की प्रशासन पर प्रभावहीनता को भी उजागर कर दिया।

अगले दिन 25 मार्च को मजदूरों ने गांव की ओर पैदल कूच कर दिया। एक साथ हजारों-हजार और अधिकारी ‘वर्क फ्रॉम होम’ की तर्ज पर। किसी की नींद नहीं उड़ी।
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प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को रात 8 बजे पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा करते हुए कहा था कि ‘लापरवाही की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। जो जहां है, वहीं रहे’।
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जब किसी परिवार अथवा देश का मुखिया अपने सहयोगियों की अक्षम्य लापरवाही के लिए देश/परिवार से क्षमा मांगे, इससे बड़ी शर्म की बात और हो भी क्या सकती है। शर्म तो इस बात पर भी आती है कि प्रधानमंत्री ने लापरवाही पर 22 मार्च को भी नाराजगी प्रकट की थी। नोएडा में जाम लगा था। दिल्ली तथा चार राज्यों में तो कर्फ्यू लगाना पड़ गया था। राज्यों को सख्ती से निपटने के आदेश भी जारी किए थे। : प्रश्न यह है कि फिर भी अधिकारी हिले नहीं। राजस्थान में तो कार-बाइक तक पर रोक लगा दी गई। तब से आज तक कोरोना की गंभीरता तथा कामगारों के पलायन का जो नजारा सामने आया, उसने प्रशासन के निकम्मेपन की भी पोल खोल दी और सरकारों की प्रशासन पर प्रभावहीनता को भी उजागर कर दिया। अगले दिन 25 मार्च को मजदूरों ने गांव की ओर पैदल कूच कर दिया। एक साथ हजारों-हजार और अधिकारी ‘वर्क फ्रॉम होम’ की तर्ज पर। किसी की नींद नहीं उड़ी। : प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को रात 8 बजे पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा करते हुए कहा था कि ‘लापरवाही की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। जो जहां है, वहीं रहे’। : #पाठकपुराण #गुलाब_कोठारी #कोरोना_और_जीवन