गुज़रे हुए लम्हात को सोचूंगा और क्या! फिर ख़ुद को किसी मोड़ पे ढूंढूंगा और क्या! तुमने तो कई बार किया तर्के-ताल्लुक, अब ख़ुद से भी मैं रूठ के बैठूंगा और क्या! फिर दूर चले जाने की तुम बात करोगे, फिर अश्क ले के आंखों में रोकूंगा और क्या! माज़ी की हकायत से जो निस्बत है अभी तक, मुझमें ही कमी होगी ये समझूंगा और क्या! फ़ितरत को बदलने का तकाज़ा जो करोगे ! फिर ख़्वाब इन्ही आंखों से नोचूंगा और क्या! गर कुफ़्र को ईमान पे तरजीह मिलेगी, मुंह मोड़ के उस बज़्म से चल दूंगा और क्या! #yqaliem #Guzrehuelamhaat #aur_kya #tark_e_taaluq #ashkbaar_aankhen #kufr #imaan #sochna माज़ी - Past निस्बत - connection तरजीह - Importance.