अब खामोश जाती है बातें जाने क्या सोच जाती है आते-आते।। मैंने अदब बहुत फरमाया, उसका मौन प्रास्त नहीं क़र पाया।। बातें हूबहू उसकी ऊबने लगी, लगता अब हमसे दूर जाने लगी है।। उससे मै अब हार आया हूँ उसके जाने प्रस्ताव स्वीकार क़र आया हूँ। ©विवेक कुमार मौर्या (अज्ञात ) अल्फाज़.74