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राहगीर से पूछो तुम इतने मैले क्यूँ हो फ़क़ीरगी में द

राहगीर से पूछो तुम इतने मैले क्यूँ हो
फ़क़ीरगी में दो दिल कर के यूँ बाज़ार में एकसे ही फूल क्यों बेचते हो
माधव लिखे भी तो किस कागज़ पे सियाही दो रंग क्यों देते हो
जिनसे पहले मुलाक़ात की आज क्यों साथ दो कलम दे क़लम करते हो

****
इतनी मुद्दत बा'द मिले हो.... इतनी मुद्दत बा'द मिले हो.... इतनी मुद्दत बा'द मिले हो....
किन सोचों में गुम फिरते/(रहते) हो। इतने ख़ाइफ़ क्यूँ रहते हो, हर आहट से डर जाते हो। तेज़ हवा ने मुझ से पूछा, रेत पे क्या लिखते रहते हो। काश कोई हम से भी पूछे,
रात गए तक क्यूँ जागे हो। मैं दरिया से भी डरता हूँ, तुम दरिया से भी गहरे हो। कौन सी बात है तुम में ऐसी, इतने अच्छे क्यूँ लगते हो। पीछे मुड़ कर क्यूँ देखा था, पत्थर बन कर क्या तकते हो। जाओ जीत का जश्न मनाओ, मैं झूटा हूँ तुम सच्चे हो।
अपने शहर के सब लोगों से, मेरी ख़ातिर क्यूँ उलझे हो। कहने को रहते हो दिल में, फिर भी कितने दूर खड़े हो। रात हमें कुछ याद नहीं था, रात बहुत ही याद आए हो।
हम से न पूछो हिज्र के क़िस्से, अपनी कहो अब तुम कैसे हो।
'मोहसिन' तुम बदनाम बहुत हो, जैसे हो फिर भी अच्छे हो। इतनी मुद्दत बा'द मिले हो.... ह्म्म्म होओओहोहो आआआआ..... 
ख़ाईफ़ = डरना (डरे हुए)

OPEN FOR COLLAB✨ #ATतुम्हारेबिनाज़िन्दगी
• A Challenge by Aesthetic Thoughts! ✨ 

Collab with your soulful words.✨
राहगीर से पूछो तुम इतने मैले क्यूँ हो
फ़क़ीरगी में दो दिल कर के यूँ बाज़ार में एकसे ही फूल क्यों बेचते हो
माधव लिखे भी तो किस कागज़ पे सियाही दो रंग क्यों देते हो
जिनसे पहले मुलाक़ात की आज क्यों साथ दो कलम दे क़लम करते हो

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इतनी मुद्दत बा'द मिले हो.... इतनी मुद्दत बा'द मिले हो.... इतनी मुद्दत बा'द मिले हो....
किन सोचों में गुम फिरते/(रहते) हो। इतने ख़ाइफ़ क्यूँ रहते हो, हर आहट से डर जाते हो। तेज़ हवा ने मुझ से पूछा, रेत पे क्या लिखते रहते हो। काश कोई हम से भी पूछे,
रात गए तक क्यूँ जागे हो। मैं दरिया से भी डरता हूँ, तुम दरिया से भी गहरे हो। कौन सी बात है तुम में ऐसी, इतने अच्छे क्यूँ लगते हो। पीछे मुड़ कर क्यूँ देखा था, पत्थर बन कर क्या तकते हो। जाओ जीत का जश्न मनाओ, मैं झूटा हूँ तुम सच्चे हो।
अपने शहर के सब लोगों से, मेरी ख़ातिर क्यूँ उलझे हो। कहने को रहते हो दिल में, फिर भी कितने दूर खड़े हो। रात हमें कुछ याद नहीं था, रात बहुत ही याद आए हो।
हम से न पूछो हिज्र के क़िस्से, अपनी कहो अब तुम कैसे हो।
'मोहसिन' तुम बदनाम बहुत हो, जैसे हो फिर भी अच्छे हो। इतनी मुद्दत बा'द मिले हो.... ह्म्म्म होओओहोहो आआआआ..... 
ख़ाईफ़ = डरना (डरे हुए)

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Madhav Jha

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