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गुज़रे लम्हे अक्सर बहुत याद आते हैं, तरसते हैं उन्

 गुज़रे लम्हे अक्सर बहुत याद आते हैं,
तरसते हैं उन्हें वापस पाने को पर कुछ यूँ तड़पाते हैं..!

जैसे ख़्वाब हो और मिल रही हो मंजिल,
टूट कर एकदम मनःस्थिति फेर बदल की दर्शाते हैं..!

ओझल होकर आँखों से हरपल,
मोतियों से अश्रु बरसाते हैं..!

अपने ही अपनों से रूठ कर,
जैसे अपनों को ही भड़काते हैं..!

जो चले गए हैं हमेशा के लिए दूजे लोक,
उनकी याद में हम दिन रात छटपटाते हैं..!

ज़िन्दगी चलनी चाहिए थी जो सरलता से,
हम सब कुछ होते हुए भी लड़खड़ाते हैं..!

©SHIVA KANT
  #guzrelamhe