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White चलो के शाम हुई अब घर चलते हैं फिर उसी झोपड़ी

White चलो के शाम हुई अब घर चलते हैं
फिर उसी झोपड़ी में बसर करते हैं
बहुत हो चुकी जुस्तजू सपनो कि
उन गलियों में फिर रहगुजर करते हैं

क्या दिया इस अमीरी  ने फकीरी लूटकर
 के चैन भी न रहा,उम्र भी ढल गई
ढलती शाम में फिर से वहीं अब रंग भरते हैं
चलो के शाम हुई अब घर चलते हैं

अब उठना बैठना सब खाक हो गए
रिश्तों के गर्म धागे सब राख हो गए
बुझी राख कि तपिश पे नजर रखते हैं
चलो के शाम हुई  अब घर चलते हैं
राजीव

©samandar Speaks
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