(-बेहद खास-) तुम भी जमाने से जा मिली वरना हम तुमको इस जमाने से मिलवाते इनके रंग अनेकों हैं ढंग हैं बहुरंगे अपनी सादगी से हम.. सबकुछ दिखलाते एक पल को मुखौटों को भी शर्म आ गयी पर ये पहनने वाले न शरमाए.. कभी अपना बनकर तो कभी आँसू पोछने के बहाने कैसे ये पल में ही पतित बन जाते हैं.. उस जमाने से तुम्हारा परिचय करवाते तुमको वहम है कि तुम जमाने से अलग हो उनकी चालाकियाँ तुम्हें समझ नहीं आती इसलिए खामोश रहकर खुद की नजरों से तुमको मैं दिखलाता खुद को गिरवाते जिस जमाने को सृंगार समझ तुम अब हर वक़्त रहती हो जिसके चकाचौंध में तुमने पहले ही अपनी अस्तित्व को खो दी... वरना हम उस जमाने की वास्तविक सादगी को आज तुमको दर्पण में दिखलाते इंसान का प्रेम करना कतई गलत नहीं लेकिन ये प्रेमी नहीं व्यभिचारी भेड़िए हैं सबसे आगे क्या देखे नहीं कभी तुमने उस अर्धनारी को ? बात- बात पर मगरमच्छ की आसुँ बहाते.. ये सब फटे ढोल के.. बेसुरी आवाज हैं अठरंगे सबको बेवकूफ बना.. ये खुद से सयाने हैं कहलाते -Amar Bairagi #मेरेएहसास #मेरे_शब्दांश