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(1) क्या कहूँ उनसे मुलाकातें वो लम्हा-लम्हा, किस क

(1)
क्या कहूँ उनसे मुलाकातें वो लम्हा-लम्हा,
किस कदर जीने का सबसे बड़ा आधार हुई,
मेरी नज़रों की उनकी नज़रों से नज़रें जो मिली,
उनकी नज़रें मेरी नज़रों से दिल के पार हुईं।
 

उनके होंठों की मेरे होंठों से बातें जो हुई,
मेरी आवाज़ उनकी आवाज सी फनकार हुई,
उनकी साँसों की मेरी हर साँस में साँसें जो घुलीं,
मेरी साँसें उनकी साँसों की कर्जदार हुईं। #किस्मत
दोस्तों मेरी ये कविता दो हिस्सों में है। क्योंकि एक पे ये पूरी नहीं आ रही थी। ये पहला भाग है। दूसरा भाग आगे है।
(1)
क्या कहूँ उनसे मुलाकातें वो लम्हा-लम्हा,
किस कदर जीने का सबसे बड़ा आधार हुई,
मेरी नज़रों की उनकी नज़रों से नज़रें जो मिली,
उनकी नज़रें मेरी नज़रों से दिल के पार हुईं।
 

उनके होंठों की मेरे होंठों से बातें जो हुई,
मेरी आवाज़ उनकी आवाज सी फनकार हुई,
उनकी साँसों की मेरी हर साँस में साँसें जो घुलीं,
मेरी साँसें उनकी साँसों की कर्जदार हुईं। #किस्मत
दोस्तों मेरी ये कविता दो हिस्सों में है। क्योंकि एक पे ये पूरी नहीं आ रही थी। ये पहला भाग है। दूसरा भाग आगे है।
jasrana4801

JASRANA

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