पल्लव की डायरी टूट गयी सब आसे,जग डर के साये में पल रहा है दर्द पीड़ा का समुंदर हर आँखो में दिख रहा है लाचारी हर बस्ती में पसरी,भय से मानव तड़प रहा है घात लगा कर,व्यवस्था हड़प ली डरो का कारोबार चल रहा है तंत्रो ने सब अर्थ व्यवस्था सोख ली रोजी रोटी पर खोफ का साया है जुल्म और अत्याचार हथियार बने शोषणों के अधमरा जग का कोना कोना है कर दी सारी दुनियाँ खोप के हवाले हर मानव का अस्तित्व खतरे में है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" कर दी सारी दुनियॉ खोप के हवाले