स्त्री ने ही जन्म दिया स्त्री ने ही मार दिया 9 महीने रखकर गर्भ में पल भर में संघार किया बेटी होना अगर पाप है तो मां से इतना प्यार क्यों बेटे होते हैं आपके तारे फिर बेटी बेकार क्यों बड़े सपनों के हाथों से बेटियों की गर्दन दब गई जीती जागती एक परी पल में सब बन गई बेटों को शिक्षा क्यों और बेटी को घर का काम मिला बेटा खेले जिस्मों से तब कोई बात नहीं और बात अगर बेटी पर आई तो उसको वैश्या नाम मिला दौलत पर हक है बेटों का पर घर से निकली बेटी है हर बार नहीं सब बार ही नारी की परीक्षा होती है मां बाप ने भी कन्यादान किया पति ने भी अपमान किया घर-घर करती वह तड़पती रही फिर अंत में घर श्मशान किया देकर कुर्बानी जिस्म की भूख तेरी मिटाती रही खुद को बादशाह समझने वाले तुझको गिरी हुई ही क्यों वह नजर आती रही कामवासना की थी आंधी फिर भी उसने खुद को रोका था भरोसा करके तुझ पर उसने खुदके जिस्म को सौंपा था फिर से जिस्म तार-तार किया दर्द तो उसको पीना है सुन ले अब तो उसकी हैवानियत के लिए भी एक सीमा है । ©akash shrivastav #savethegirls Praveen Jain "पल्लव"