बचपन और शैतानी नहीं याद आती मुझे कोई.बहुत बड़ी शैतानी इतना जरूर है कि -- मैं हमेशा लीडर बनना पसंद करती थी ग्रुप की घर में सबसे छुपकर मनपसंद चीज चुराकर खाना आज भी नहीं भूल पायी हूँ बचपन से ही बनी मैं नयी - नयी किताबों की शौकीन सब कहते हैं मैं बचपन से ही बातों की थी नानी जिज्ञासाओं से भरी सवालों की लड़ी पूछने को प्रश्न हर वक्त रहती थी खड़ी बहुत शैतान नहीं थी फिर भी कुछ गहरे घाव दे गया बचपन जख़्म भी ऐसे जीवन की दिशा ही बदल गया बचपन फिर भी नहीं बदलने दिया खुद को हूँ मैं पहले सी कुछ चंचल हूँ मैं सवाली आज भी, पर ज्यादा दृढ़ ज्यादा अटल नहीं चाहूंगी कभी किसी और का ह़ो ऐसा बचपन #बचपन से ज्यादा जख्म याद आते हैं