तन्हा रहकर भी मुस्कुरा लेता हूँ मैं तुझे याद करके, और सुबूत क्या दूं अपनी मोहब्बत का, तुझे पाने तक का जो ये सफर है खूबसूरत सा एक एहसास सिमटे है इसमें, और सुबूत क्या दूं अपनी मोहब्बत का, ये हालात सुरमे की तरह पीसे हुए हैं मुझे कि शायद तभी तेरी निगांहो पर मैं चढ़ पाऊं, और क्या सुबूत दूं अपनी मोहब्बत का, अधूरा हूँ मैं तेरे बगैर मिले तू तो मुकम्मल हो जाऊँगा मैं इस इंतजार में हूँ, और सुबूत क्या दूं अपनी मोहब्बत का।।। सुबूत ❤