"पलाश"-ए-फूल है, यारों, नहीं कोई अजूबा है। गुल-ए-गुलशन में है, कमसिन, इन आंखों का तजुर्बा है। शिफा़ खाने में जाकर पूछिए, साहब! हकीमों से। इलाज़-ए-मर्ज में शामिल, फना होकर मेहरबां है। #संवेदिता ©Rupam Samvedita #पलाश