पिता! जब तेरे किरदार के आईने में सोचों की सूरत देखता हूँ तो एक दिलकश शोर उभरता है चौड़ा हो जाता है सीना हौसले का उम्मीद जाग जाती है ख़्वाब डूब जाता है बेहिसाब जश्न में और थमता नहीं सिलसिला बचपन की मीठी यादों का # पिता! जब देखता हूँ तेरे किरदार के आईने में