मेरे दिल में रहने वाले मुझे तो बताओ मुझसे ही छुपे हो कहाँ मन में जो तेरे कह दे साफ साफ मना मनाकर हम तो हार गये तुम जीत गये क्षमा कर दर्श दिखा बहुत हुआ रूठना मनाना बहुत युग बीत गये लाखो को तारा तूने फिर मेरी बारी में तेरी ये नाराजगी कैसी गुनाह किये लाखो मैंने कबूल है सब मुझको जहाँ तू बसता फिर वहाँ दोष न टिक सकता गैरों से कुछ न पूछा तूने मुझसे ही हिसाब कैसा जिसको तूने अपना लिया उसको खुदा बना दिया उसका कर्म अच्छा फिर मेरा खराब कैसा तुम तो भेदभाव न करते फिर मुझसे क्यों ©Mahadev Son मेरे दिल में रहने वाले मुझे तो बताओ मुझसे ही छुपे हो कहाँ मन में जो तेरे कह दे साफ साफ मना मनाकर हम तो हार गये तुम जीत गये क्षमा कर दर्श दिखा बहुत हुआ रूठना मनाना बहुत युग बीत गये लाखो को तारा तूने फिर मेरी बारी में तेरी ये नाराजगी कैसी