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अपने दुःख पे आह आह,हमारे दुःख पे वाह वाह..! रूखे-

 अपने दुःख पे आह आह,हमारे दुःख पे वाह वाह..!
रूखे-रूखे रिश्ते क्यों,होते नहीं स्वाहा..!

अपनी अपनी कहानी,ज़ख़्मों की निशानी..!
कराहते रहे रात-दिन,वो मिला न जिसे चाहा..!

सभी ये दोगले किरदार,कहाँ किसके वफ़ादार..!
ज़माने ने फिर भी,क्यों इन्हीं को सराहा..!

हमारी इंसानियत,लगे सबको हैवानियत..!
दुःखों का दिखता,ये कैसा चौराहा..!

किसे बताऊँ कैसे सुनाऊँ,हाल-ए-दिल अपना..!
संक्षेप में भी नज़र,आयेगा वार्तालाप आल्हा..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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