सिसकीयाँ ले ले कर के रात में रोते हैं! आजकल आशिक़ हर बात में रोते हैं! ख़्वाबों में भी हदें बाँध कर आती है वो! उससे होने वाली हर मुलाक़ात में रोते हैं! कुछ हँसकर ग़म में ज़िंदगी गुज़ार देते है! कुछ हैं कि खुशीयों की कायनात में रोते हैं! सबको महज़ पानी लगे आब-ए-चश्म मेरा! लिहाज़ा रोना हो तो हम बरसात में रोते हैं! मिलती है जिस्म को राहत रूह को सुकूँ! रोना है राएगाँ उनका जो वफ़ात में रोते हैं! you can also read here.. 👇👇👇 सिसकीयाँ ले ले कर के रात में रोते हैं! आजकल आशिक़ हर बात में रोते हैं! ख़्वाबों में भी हदें बाँध कर आती है वो! उससे होने वाली हर मुलाक़ात में रोते हैं!