ख्वाहिशें जो उमड़ रही थी मन ही मन मे मर रही थी दिल की बातें किससे कहता आसमान से तारा टूटा कोई ख्वाहिश कैसे माँगू तारो ने हर बार छला था पुरानी मन्नते पूरी कर दे इतना सा मैं मांग बैठा तारे टिमटिम रोज करते टूटते और रोज बिखरते चमकीली सी रौशनी में ख्वाहिशे हम रोज करते एक दिन फिर हुआ अनोखा आसमान से तारा टूटा मैं भी छुपकर देख रहा था मैं तो था तारो से रूठा तारो की क्या बात यही थी या केवल थे हमसे रूठे ख्वाहिशे अब तब मागेंगे आसमान से चन्दा टूटे ©गंगवार रामवीर #ramveer