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।।श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप-अध्याय -११ विराटरूप।। न

।।श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप-अध्याय -११ विराटरूप।।
न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानै- र्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रै: |
एवंरूपः शक्य अहं नृलोके द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर || ४८
हे कुरुश्रेष्ठ! अर्जुन! तुम अपने दिव्य नेत्रो से जिस रूप का इस समय दर्शन कर रहे हो उसे न तो वेदाध्ययन से न कठिन तपस्या से न दान से न पूजा से ही देखा जा सकता है कोई इन साधनो के द्वारा मुझे इस रूप में नही देख सकता। ।।श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप-अध्याय -११ विराटरूप।।

#bhagvatgeeta #aditya321998
।।श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप-अध्याय -११ विराटरूप।।
न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानै- र्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रै: |
एवंरूपः शक्य अहं नृलोके द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर || ४८
हे कुरुश्रेष्ठ! अर्जुन! तुम अपने दिव्य नेत्रो से जिस रूप का इस समय दर्शन कर रहे हो उसे न तो वेदाध्ययन से न कठिन तपस्या से न दान से न पूजा से ही देखा जा सकता है कोई इन साधनो के द्वारा मुझे इस रूप में नही देख सकता। ।।श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप-अध्याय -११ विराटरूप।।

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adityakumar7343

Aditya Kumar

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