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ख़ामोश कौन आख़िर यूँ बे-सबब ख़ामोश रहता है! इश्क़ ह

ख़ामोश कौन आख़िर यूँ बे-सबब ख़ामोश रहता है!
इश्क़ हो गर तभी ये लब ख़ामोश रहता है!

हैवानों की हैवानगी से बेटियाँ हैं सहमी सी! 
सब कुछ देख भी क्यों रब ख़ामोश रहता है! 

ये हवा ये घटा ये महफ़िल ये समा ये जहाँ! 
तुम चुप रहती हो तो सब ख़ामोश रहता है! 

एक बात है उस में जो भाती है हम को! 
उसे कुछ सुझता नहीं जब ख़ामोश रहता है! 

हाल हुबहू है मदारी के बंदर सा "जाज़िब"!
दिखाकर के जो करतब ख़ामोश रहता है! कौन आख़िर यूँ बे-सबब ख़ामोश रहता है!
इश्क़ हो गर तभी ये लब ख़ामोश रहता है!

हैवानों की हैवानगी से बेटियाँ हैं सहमी सी! 
सब कुछ देख भी क्यों रब ख़ामोश रहता है! 

ये हवा ये घटा ये महफ़िल ये समा ये जहाँ! 
तुम चुप रहती हो तो सब ख़ामोश रहता है!
ख़ामोश कौन आख़िर यूँ बे-सबब ख़ामोश रहता है!
इश्क़ हो गर तभी ये लब ख़ामोश रहता है!

हैवानों की हैवानगी से बेटियाँ हैं सहमी सी! 
सब कुछ देख भी क्यों रब ख़ामोश रहता है! 

ये हवा ये घटा ये महफ़िल ये समा ये जहाँ! 
तुम चुप रहती हो तो सब ख़ामोश रहता है! 

एक बात है उस में जो भाती है हम को! 
उसे कुछ सुझता नहीं जब ख़ामोश रहता है! 

हाल हुबहू है मदारी के बंदर सा "जाज़िब"!
दिखाकर के जो करतब ख़ामोश रहता है! कौन आख़िर यूँ बे-सबब ख़ामोश रहता है!
इश्क़ हो गर तभी ये लब ख़ामोश रहता है!

हैवानों की हैवानगी से बेटियाँ हैं सहमी सी! 
सब कुछ देख भी क्यों रब ख़ामोश रहता है! 

ये हवा ये घटा ये महफ़िल ये समा ये जहाँ! 
तुम चुप रहती हो तो सब ख़ामोश रहता है!