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"स्मृतियां" मन की सतह से नीचे ढुलकती नहीं बन आँस

"स्मृतियां"

मन की सतह से 
नीचे ढुलकती नहीं
बन आँसू आँखों से 
लुढ़कती रहीं
कभी बन मुस्कान 
होंठों को कानों से मिलाती रहीं

मुझे ख़ाली देखते ही घेर लेती हैं 
और 
निर्जीव सी ये स्मृतियाँ 
ख़ुद को जीवित करती हैं 
मेरी साँसों से, 
मेरे हृदय स्पंदन से 
धड़काती हैं ख़ुद को
मेरी धड़कनों का हिस्सा बन 
फैल जाती हैं मेरे पूरे शरीर में 
लहू बन कर और 
बन जाती हैं मेरा ही कोई अभिन्न हिस्सा।


हाँ ऐसी ही होती हैं स्मृतियाँ

©Prashant Shakun "कातिब"
  #स्मृतियां #Memories 
#प्रशांत_शकुन_कातिब 

0225hrs Friday June 10th, 2022