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मास बीते, दिवस बीते, बीते जाएं दिन रैन,

मास   बीते,   दिवस  बीते,  बीते  जाएं  दिन   रैन,
हांड़ मांस की काया  सूखी, तुम  बिन  दिल  बेचैन।

चंदा  चाहे  चकोर   को, चातक  स्वाति  की इक बूंद,
बिरहिन  चाहे  प्रियतम को, बैराग ज्ञान बिन सून।

सूखा शरीर बेजान सी आंखें,आज भी बाट जोहती है,
इन नैनों की,,सुख की,अनुभूति कन्हैया तेरे दर्शन से है।

भक्ति अधूरी  प्रेम  विना,ज्ञान  अधूरा   गुरु   विना,
बैराग्य अधूरा साधु बिना , मुक्ति अधूरी वैकुंठ बिना।
हरि हरि बोल 🌹
अल्फ़ाज़ मेरे ✍️🙏🏻🙏🏻

©Ashutosh Mishra #Sukha 
मास बीते दिवस बीते बीत जाए दिन रैन,
हांड़ मास की काया सूखी, दिल तुम बिन बेचैन।
चंदा चाहे चकोर को,चातक स्वाति की इक बूंद।
विरहिन चाहत प्रियतम को, वैराग्य बिना सब सून।
सूखा शरीर बेजान-सी आंखें,आज भी बांट जोहती है।
इन नैनों को सुख की अनुभूति, कन्हैया तेरे दर्शन से है।
भक्ति अधूरी प्रेम बिना, ज्ञान अधूरा गुरु बिना,

#Sukha मास बीते दिवस बीते बीत जाए दिन रैन, हांड़ मास की काया सूखी, दिल तुम बिन बेचैन। चंदा चाहे चकोर को,चातक स्वाति की इक बूंद। विरहिन चाहत प्रियतम को, वैराग्य बिना सब सून। सूखा शरीर बेजान-सी आंखें,आज भी बांट जोहती है। इन नैनों को सुख की अनुभूति, कन्हैया तेरे दर्शन से है। भक्ति अधूरी प्रेम बिना, ज्ञान अधूरा गुरु बिना,

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