ये कमरा, ये छत ये उतरती-चढती सीढ़ियां जिंदगी की भागदौड़ में गुम हुई ये गलियां ये अपनेपन का अहसास, सिर्फ तुम ही नहीं, मैं भी जुड़ी। ये कमरा! कई रातें गुजारी होंगी हजारों सपनें लिए, सपनों को पूरा करने की ऊर्जा से भरी सुबह लिए, सिर्फ तुम ही नहीं, उन सपनों से मैं भी जुड़ी। ये छत! कभी छत पर कुछ कदम टहलते हुए ठंडी हवाओं ने जब तुम्हें सहलाया होगा, सारी फिक्र को उन हवाओं में उड़ाते हुए, सिर्फ तुम ही नहीं, उन हवाओं से मैं भी जुड़ी। ये उतरती-चढती सीढ़ियां! इन सीढ़ियों सी उतरन से भरी निराशा तो कभी चढ़ती, उड़ान भरती आशाएं, इन उतार-चढ़ाव के बीच में सिर्फ तुम ही नहीं, मैं भी जुड़ी। भागदौड़ में गुम हुई ये गलियां! जानी पहचानी सड़कें, अपने से लगते वो चेहरे, भागदौड़ में सड़कें नापती रफ्तार, तो कभी सुहानी शाम में उन सड़कों और गलियों से गुजरने के अहसास से, सिर्फ तुम ही नहीं, मैं भी जुड़ी। ये अपनेपन का अहसास! जो थे कभी अनजाने से, लगते थे बेगाने से, न जाने कब अपने से लगे इस अंजानी राह में अनजान से अपनेपन के सफर में, सिर्फ तुम ही नहीं, कहीं मैं भी जुड़ी। © varsha Mahananda जुड़ाव #PoetInYou