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Written by Harshita ✍️✍️ #Jazzbaat हर नफ़रत के पीछ

Written by Harshita ✍️✍️
#Jazzbaat
हर नफ़रत के पीछे
मेरे परचम लहराया तिरंगा रहा

ख़ून का रग लाल होकर भी दिल श्वेत रग सा क्यू रहा
वस्ल ए रात अकेली रही कश म कश में आवाम कहती रही

हम एक होकर भी एक नहीं ये मतबेद आवाम से क्यू रहागिर बाट ते रही
हिंदुस्तान पाकिस्तान के ख़ून के रंग एक होकर किसने फैलाया फसाद दिलो मे अलग अलग गुणों में हालात तरसते रहे

मुल्क किसका डरती  सेहमी धरती की मिट्टी को सरहदों पर बाट ते रहे
कुछ वहीं रेह गए, कुछ यहीं रह गए ,दिलो की कहानी अधूरी कुछ पूरी ,कुछ अंतिम दम भर्ती अपनों की फ्रिक , अपनों का ज़िक्र इन दोनों को नई रिश्तों की नीव जमाती रही

कमाल के रुतबे से जीते है कितने मुल्क कहीं अंग्रेज़ कही हिन्दू कहीं मुस्लिम कहीं बेगली कहीं कोई कहीं कोई कितने कितने बरसों सेदियो की तलाश क्या पूरी करती रही,
एकता से अनेकता का भाषण देते सासदे थकती रही

मेल मिला से मिलता है जुड़ना , चाहत के परिंदे भी उड़ते मुल्कों मुल्कों की सरहदें भी पार करते रहे
क्या उनकी भी यात्रा ने लेना पड़ता है, पर्चा दाखि ली होने का, विश्वास के घात के सफ़र मे चलते सफेद ख़ून के नक़ाब पोश कुछ दरिंदों का जवाब लेते रहे

कब खत्म होगा ये प्रण हम भी करते रहे
मुद्दे बनते रहे, चिराग जलते रहे

एक नई कहानी एकता की तलाश करते रहे
प्रेम के प्रतीक की ज्योति जलाते रहे
 OPEN FOR COLLAB✨ #ATहरनफ़रतकेपीछे 
• A Challenge by Aesthetic Thoughts! ♥️
Collab with your soulful words.✨  

• Must use hashtag: #aestheticthoughts 

• Please maintain the aesthetics.
Written by Harshita ✍️✍️
#Jazzbaat
हर नफ़रत के पीछे
मेरे परचम लहराया तिरंगा रहा

ख़ून का रग लाल होकर भी दिल श्वेत रग सा क्यू रहा
वस्ल ए रात अकेली रही कश म कश में आवाम कहती रही

हम एक होकर भी एक नहीं ये मतबेद आवाम से क्यू रहागिर बाट ते रही
हिंदुस्तान पाकिस्तान के ख़ून के रंग एक होकर किसने फैलाया फसाद दिलो मे अलग अलग गुणों में हालात तरसते रहे

मुल्क किसका डरती  सेहमी धरती की मिट्टी को सरहदों पर बाट ते रहे
कुछ वहीं रेह गए, कुछ यहीं रह गए ,दिलो की कहानी अधूरी कुछ पूरी ,कुछ अंतिम दम भर्ती अपनों की फ्रिक , अपनों का ज़िक्र इन दोनों को नई रिश्तों की नीव जमाती रही

कमाल के रुतबे से जीते है कितने मुल्क कहीं अंग्रेज़ कही हिन्दू कहीं मुस्लिम कहीं बेगली कहीं कोई कहीं कोई कितने कितने बरसों सेदियो की तलाश क्या पूरी करती रही,
एकता से अनेकता का भाषण देते सासदे थकती रही

मेल मिला से मिलता है जुड़ना , चाहत के परिंदे भी उड़ते मुल्कों मुल्कों की सरहदें भी पार करते रहे
क्या उनकी भी यात्रा ने लेना पड़ता है, पर्चा दाखि ली होने का, विश्वास के घात के सफ़र मे चलते सफेद ख़ून के नक़ाब पोश कुछ दरिंदों का जवाब लेते रहे

कब खत्म होगा ये प्रण हम भी करते रहे
मुद्दे बनते रहे, चिराग जलते रहे

एक नई कहानी एकता की तलाश करते रहे
प्रेम के प्रतीक की ज्योति जलाते रहे
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