मेरा क़सूर क्या हैं। मैंने एक सपना देखा, सपनों में एक दुनियाँ देखा। आँख नहीं खुली मेरी लेक़िन, उस दुनियाँ में भी एक अलग़ दुनियाँ देखा। लोग तड़प रहे, मर कर भी भटक रहें... पड़ा था मैं धरती पर, मेरे अपने भी ना जाने, मुझसे कहाँ भाग रहें...। मेरे साथ भी सिर्फ़ वहीं लोग रहें, जो ज़मी पर मेरे बराबर पड़े... ज़ीवन की एक मात्र सच्चाई में ये भी मेरे साथ चले। तू ही बता ये दोस्त मेरे, हमारा क़सूर क्या, और हम क्यू यूँ रहे पड़े...। नहीं लड़ सका इस कोरोना से, पर तुम्हे इसके क़ाबिल तो बनाया... पर तुमने अपनी क़ाबिलियत को ना जाने कहाँ लगाया कहाँ छुपाया। एक ख़ुशी भरी परिवार चाहीं, चैन भरी दुनियाँ यूँ तड़पकर हैं पाई। दो गज ज़मीन कम हैं,या लकड़ियों की कमी..., क्यू करते नहीं मुझे इस शरीर से ज़ल्दी जुदा... जलने से पहले भी इस धुप में अब कितनी और जलें। क्या क़सूर मेरा, वक़्त से भी पहले हम क्यू मरे। क्या क़सूर मेरा, वक़्त से भी पहले हम क्यू मरे।। ©Rahul Kanha Pandit #covid19 #corona #Corona_Lockdown_Rush #Death #Deathwalk