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निभ॔या" कहाँ रही मैं ? बंधन में हूं, भय तो अब भी

निभ॔या" कहाँ रही मैं ?
 बंधन में हूं, भय तो अब भी लगता है,
शायद पहले से कहीं ज़्यादा,
 यह अबोध ,कोमल हृदय मेरा डरता है।
 
 "निभ॔या" तो बस एक नाम है,
इस काया को साँस मिलना बाकी है,
  अपने ही घर और देश में,
मुझे सुरक्षा का एहसास मिलना बाकी है।

जीवित है अब भी निभ॔या,
  साँस लेती है देश की बेटियों में,
उन सभी बच्चियों में,जो आज भी बँधी हैं
   भय और कुंठा की बेड़ियों में।

काश हम कह सके हर माँ को,
   कि मत कर चिंता अपनी लाड़ली की,
कि वह अपना सफर अकेले तय कर सकती है,
   वह अबला नहीं है, दुर्गा है,
मान है तेरा, तेरी शक्ती है।
   
दुख होता है, पीड़ा होती है ,
   क्यूं निभ॔या बहुत भयभीत है,
 उसकी आँखों में निर्भिकता की चमक नहीं,
    व्याकुलता का दुखद गीत है।

जीना चाहती है हर एक निर्भया,
   एक उनमुक्त पंछी की तरह।
कहता है उसका अबोध मन,
   कि उसे अभय का वरदान दो।
उसके देश, उसके घर, उसकी दुनिया में,
   उसके नारित्व को सम्मान दो।

🖋सुनीता मिश्रा
    बेंगलुरू #MyWordsFrmMy❤
निभ॔या" कहाँ रही मैं ?
 बंधन में हूं, भय तो अब भी लगता है,
शायद पहले से कहीं ज़्यादा,
 यह अबोध ,कोमल हृदय मेरा डरता है।
 
 "निभ॔या" तो बस एक नाम है,
इस काया को साँस मिलना बाकी है,
  अपने ही घर और देश में,
मुझे सुरक्षा का एहसास मिलना बाकी है।

जीवित है अब भी निभ॔या,
  साँस लेती है देश की बेटियों में,
उन सभी बच्चियों में,जो आज भी बँधी हैं
   भय और कुंठा की बेड़ियों में।

काश हम कह सके हर माँ को,
   कि मत कर चिंता अपनी लाड़ली की,
कि वह अपना सफर अकेले तय कर सकती है,
   वह अबला नहीं है, दुर्गा है,
मान है तेरा, तेरी शक्ती है।
   
दुख होता है, पीड़ा होती है ,
   क्यूं निभ॔या बहुत भयभीत है,
 उसकी आँखों में निर्भिकता की चमक नहीं,
    व्याकुलता का दुखद गीत है।

जीना चाहती है हर एक निर्भया,
   एक उनमुक्त पंछी की तरह।
कहता है उसका अबोध मन,
   कि उसे अभय का वरदान दो।
उसके देश, उसके घर, उसकी दुनिया में,
   उसके नारित्व को सम्मान दो।

🖋सुनीता मिश्रा
    बेंगलुरू #MyWordsFrmMy❤
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