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ख़्याल हमने एक कदम क्या उठाया तुम्हारे तो ख़्याल

ख़्याल

हमने एक कदम क्या उठाया
तुम्हारे तो ख़्याल ही बदल गये
कल तक जो हम संस्कारों की देवी थीं
आज तेवर क्यों बदले बदले से है 
नहीं किया हमने अपनी जिम्मेदारी से बेवफ़ाई
नहीं पहुंचाई है संस्कारों को ठेस
नहीं चढ़ाई है कोई कर्तव्यों की बलि
नहीं धरा कोई बहरूपिए का भेष
फिर क्यों लगी तुम्हारे स्वाभिमान को ठेस
बस अपने को पहचानने की कोशिश की है
अंदर एक शक्ति जो कहीं घुट घुट कर जी रही थी
उसे टटोलने की कोशिश की है 
रख सकती हुं मैं भी अपना स्वच्छंद विचार
कर सकती हुँ  अब अपना स्वर्णिम स्वप्न साकार

अम्बिका मल्लिक ✍️
दरभंगा बिहार

©Ambika Mallik
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