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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री ह

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
1 - जिन्हें दोष नहीं दीखते

'आप निर्दोष हैं। आराध्य का आदेश पालन करने के अतिरिक्त आपके पास ओर कोई मार्ग नहीं था।' आचार्य शुक्र आ गये थे आज तलातल में। पृथ्वी के नीचे सात लोक हैं - अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल , रसातल और पाताल। इनमें तीसरा लोक सूतल भगवान् वामन ने बलि को दे रखा है। उसके नीचे अधोलोंको का मध्य लोक तलातल मायावियों के परमाचार्य परम शैव असुर-विश्वकर्मा दानवेन्द्र मय का निवास है। सुतल में बलि की प्रतिकूलता का प्रयत्न करने वाले असुरों को दण्ड देने श्रीनारायण का सुदर्शन चक्र यदा-कदा चक्कर लगा लेता है और अधोलोक प्राय: सभी उसके प्रशासन में हैं; किंतु तलातल में वह कभी नहीं जाता। भगवान् त्रिपुरारि का लाडला भक्त मय - उसके आश्रितों को चक्र से कभी भय नहीं हुआ।

'दानवेन्द्र अत्यंत दुखी हैं। पूरे सात दिनों से उन्होंने जल ग्रहण नहीं किया।' अनुचरों को कोई मार्ग नहीं सूझा तो वे सुतल आचार्य शुक्र के चरणों में पहुँचे। आचार्य अपने मुख्य यजमान असुरेन्द्र बलि के समीप ही रहते हैं; किंतु दानव तथा राक्षसों के भी वही कुललुरु हैं। वही विपत्ति के सहायक तथा मार्गद्रष्टा हैं। दानवों को लगा कि आचार्य ही कोई सुलझाव निकाल सकते हैं।
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Anil Siwach

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 1 - जिन्हें दोष नहीं दीखते 'आप निर्दोष हैं। आराध्य का आदेश पालन करने के अतिरिक्त आपके पास ओर कोई मार्ग नहीं था।' आचार्य शुक्र आ गये थे आज तलातल में। पृथ्वी के नीचे सात लोक हैं - अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल , रसातल और पाताल। इनमें तीसरा लोक सूतल भगवान् वामन ने बलि को दे रखा है। उसके नीचे अधोलोंको का मध्य लोक तलातल मायावियों के परमाचार्य परम शैव असुर-विश्वकर्मा दानवेन्द्र मय का निवास है। सुतल में बलि की प्रतिकूलता का प्रयत्न करने वाले असुरों को दण्ड देने श्रीनारायण का सुदर्शन चक्र यदा-कदा चक्कर लगा लेता है और अधोलोक प्राय: सभी उसके प्रशासन में हैं; किंतु तलातल में वह कभी नहीं जाता। भगवान् त्रिपुरारि का लाडला भक्त मय - उसके आश्रितों को चक्र से कभी भय नहीं हुआ। 'दानवेन्द्र अत्यंत दुखी हैं। पूरे सात दिनों से उन्होंने जल ग्रहण नहीं किया।' अनुचरों को कोई मार्ग नहीं सूझा तो वे सुतल आचार्य शुक्र के चरणों में पहुँचे। आचार्य अपने मुख्य यजमान असुरेन्द्र बलि के समीप ही रहते हैं; किंतु दानव तथा राक्षसों के भी वही कुललुरु हैं। वही विपत्ति के सहायक तथा मार्गद्रष्टा हैं। दानवों को लगा कि आचार्य ही कोई सुलझाव निकाल सकते हैं।

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