कलम अधूरी एक कविता के अल्फाजों पर तोड़ चुके हैं जिन प्रश्नों का हल हम खुद थे उन प्रश्नों को छोड़ चुके हैं कुछ पृष्ठों पर लिख तनहाई की सरगम को गाया हमने बाकी पृष्ठ बचे इस मन के कोरे कोरे मोड़ चुके हैं इतनी ही थी पहुंच हमारी इस हद तक हम दौड़ चुके हैं सौ दफहा चटका मन मेरा सौ दफहा हम जोड़ चुके हैं पहले बोला थोड़ा बदलो अपने मन की इन बातो को बातें ही तो की थी हमने क्यों गिनते हो उन रातो को उनको कुछ छूटें चहिये थी जीवन की उजली राहों में उनको प्रेम बांध देता है मेरे मन , मेरी बाहों में