मैं आदतन उनसे बार-बार बोल पड़ती हूँ न चाहकर भी..... मुझे समझ नही आता कि कैसे रहूँ मैं उनके इर्द गिर्द...... क्यों कि उन्हें मेरा बोलना अच्छा नही लगता मेरी हर बातें उन्हें खटकती है मैं मानती हूँ कि मैं उतनी अच्छी नही हूँ जो रूप रेखा वो अपने मन मस्तिष्क में जमा कर बरसो से बैठे हुए थे उन्हें उस रूप रेखा के मुताबिक ठीक वैसा मिला ही नही वो कहते थे मुझे वो चाँद जैसा खूबसूरती चाहिए था, पर उन्हें ये कौन बताए चन्द्रयान 2 के परिक्षण निरीक्षण के बाद पता लगा कि वो चाँद वैसा नही है .... जैसा तुम अपने जहन में बड़ी ही शिद्दत से मुद्दतों से बसाकर एक खूबसूरत ख़्याल बनाकर रक्खा है उसे अब निकाल कर फेंको क्योंकि वहां ऐसा वैसा कुछ नही है जो है मिला उसी में खुश रहो सन्तुष्ट रहो उसका भरसक ख्याल रखो वही जीवनसंगिनी है उसी के संग सँग चलकर ही सारी क़ायनात हासिल कर सकोगे वरना मुँह पर हाथ फेर कर बस रोते सिसकते रह जाओगे...।। अंजली श्रीवास्तव आदतन