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सज्जन हो मन आपणों, शान्ति रहे प्रदेश। शिक्षा और सौ

सज्जन हो मन आपणों, शान्ति रहे प्रदेश।
शिक्षा और सौहार्द से भरा  रहे  यह  देश।

भटके पथ हैं आपणों, कुटिल क्रूर आवेश।
बढ़ती जाती वासना,बदल बदल कर भेष।

रक्षक ही भक्षक  हुए, तक्षक  हुए  प्रवेश!
जन्मेजय की आवणी बोलो तुम अनिमेष।

तुम अपनी दो चतुराई, दृणता रहे विशेष।
कर्तव्यों की राह पर रहे ना कुछ भी शेष।

दूर करो संकट सभी और मिटाओ क्लेश।
सुख वैभव से वार  दो  मंगलमूर्ति  गणेश। 
सज्जन हो मन आपणों, शान्ति रहे प्रदेश।
शिक्षा और सौहार्द से भरा  रहे  यह  देश।

भटके पथ हैं आपणों, कुटिल क्रूर आवेश।
बढ़ती जाती वासना,बदल बदल कर भेष।

रक्षक ही भक्षक  हुए, तक्षक  हुए  प्रवेश!
सज्जन हो मन आपणों, शान्ति रहे प्रदेश।
शिक्षा और सौहार्द से भरा  रहे  यह  देश।

भटके पथ हैं आपणों, कुटिल क्रूर आवेश।
बढ़ती जाती वासना,बदल बदल कर भेष।

रक्षक ही भक्षक  हुए, तक्षक  हुए  प्रवेश!
जन्मेजय की आवणी बोलो तुम अनिमेष।

तुम अपनी दो चतुराई, दृणता रहे विशेष।
कर्तव्यों की राह पर रहे ना कुछ भी शेष।

दूर करो संकट सभी और मिटाओ क्लेश।
सुख वैभव से वार  दो  मंगलमूर्ति  गणेश। 
सज्जन हो मन आपणों, शान्ति रहे प्रदेश।
शिक्षा और सौहार्द से भरा  रहे  यह  देश।

भटके पथ हैं आपणों, कुटिल क्रूर आवेश।
बढ़ती जाती वासना,बदल बदल कर भेष।

रक्षक ही भक्षक  हुए, तक्षक  हुए  प्रवेश!