सुबह सुबह ये हल्की हवा! जब छु जाए रूह को। सपनों की दुनिया से बाहर लाती! सामने रखती हर हक़ीक़त को । नई उम्मीदों की किरण चमकती! ख्वाबों को सच में बदलती। ढ़लती शाम के अँधेरों में, एक नई सपनों की चादर ओढ़ मैं सो जाती! सुप्रभात| प्रिय लेखकों अपनी ज़बान के साथ अपने विचारों को इस विषय पर प्रकट करें| सबसे अच्छी रचनाएँ समूह द्वारा हाईलाइट प्राप्त करेंगी| समय समाप्त 18/04/2021 को सुबह 04 बजे|