फूल शाख़ से टूटकर आ गिरा, जाने अब कहाँ जा.... ठहरेगा। क्या मिलेगा फिर उसे कोई गुलशन जो उसे रहने की जगह.... देगा। बदहवाएँ उसे यहाँ-वहाँ टहलाएँगी, और वो तिनका-तिनका.... बिखरेगा। कौन होगा जो उस गमख़्वार को समेटेगा, कौन होगा जो उसके कोमल ह्रदय को.... देखेगा। इसी सोच-विचार में परेशान बैठा हूँ " विराज़ " वो फूल टूट चुका है अब कौन उसकी सुगंध पे.... मरेगा। ©V.k.Viraz #phool Parijat P