कुछ सवाल बस सवाल ही बनकर रह जाते है! शोर मन की ऐसी होती है जिसका ज़वाब हम दे नहीं पाते है! लड़ते रहते रातभर अँधेरों से, रौशनी से भी कुछ अनबन सी होती है! बेकरार से रहते, चुभती ख़ामोशी घुटन सी रहती सुबह शाम है! ज़िंदगी तू भी क्या मज़ाक करती है, तू ही मेरी सहेली तुझसे ही कभी-कभी दुश्मनी होती है! सुप्रभात, 🌼🌼🌼🌼 🌼आज का हमारा विषय "चुभती ख़ामोशी" एक ऐसा विषय है जो किसी अपने के ख़ामोश होने से जिस पीड़ा का अनुभव होता है, उस अहसास को शब्दों में ढालने का एक प्रयास कीजिए... आशा है आप लोगों को पसंद आएगा। 🌼आप सब सुबह की चाय की चुस्की लेते हुए लिखना आरंभ कीजिए।