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पल्लव की डायरी ड्यूटी और नोकरी में,व्यस्त सब अंदाज

पल्लव की डायरी
ड्यूटी और नोकरी में,व्यस्त सब
अंदाज अपना  जीने का खो रहे है
बंधी बधायी पगार पाकर
रहीसी के गुण भूल रहे है
खुली हवा का आनन्द ही कुछ है
बजूद मालिकाना भूल रहे है
दूसरो के आगे नाचकर
गुलामी में अपनी सोच और 
विस्तारवाद का सिद्धांत भूल रहे है
मनन और चिंतवन की भूख कम कर
व्यवसाय और उद्योग से छिटक रहे है
नोकरो वाली व्यवस्ता में पड़कर
भारतवासी गुलामी के भाव फिर जाग्रत कर रहे है
                                                   प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  #Wochaand बंधी बधायी पगार पाकर,रहीसी के गुण भूल रहे है
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