ये कैसी उम्र में आकर मिली हो तुम, बोहोत जी चाहता है फिर से बोउँ अपनी आँखें, तुम्हारे ढेर से चेहरे उगाउँ और बुलाऊँ बारिशों को बोहोत जी है कि फ़ुरसत हो, तस्सवुर हो तस्सवुरों में ज़रा सी बागबानें हों मगर जाना इक ऐसी उम्र में आकर मिली हो तुम किसी के हिस्से की मट्टी नहीं हिलती किसी के धूप का हिस्सा नहीं छिनता मगर अब मेरी क्यारी में लगे पौधे किसी को पाँव रखने के लिए भी थाह नहीं देते ये कैसी उम्र में आकर मिली हो तुम ―गुलज़ार— % & #उम्रकरिश्ता #इज़हार #musingsoflove #योरकोट_दीदी #योरकोटबाबा