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White पल्लव की डायरी खुशबू से महक रही थी क्यारी सब

White पल्लव की डायरी
खुशबू से महक रही थी क्यारी
सबके पसीने से आबाद थी आबादी
रोटी कपड़ा और मकान तक
जद में थी कीमत हमारी
बदलाव के चक्कर मे,हाथ मल रहे है
पांच किलो अनाज के बदले
समीकरण जीवन के बदल रहे है
चौकीदार ही चोर बन गया
कर्ज देश पर कर के,खुद मालामाल हो गया
इतने काँटे चुभोकर जनमानस के
फूल जैसी जनता को मसल गया
                                                प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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