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पेंच निग़ाहों के लड़ा कर, इश्क़ के मैदान में अड़ा कर.

 पेंच निग़ाहों के लड़ा कर,
इश्क़ के मैदान में अड़ा कर..!

वो हिम्मत-ए-ज़ोर,
हमारा आजमाते हैं..!

होते हैं मगरूर वो हुस्न पर अपने,
आजमाईशें पुरज़ोर कुछ यूँ दर्शाते हैं..!

समझ कर कमज़ोर और कायर हमें वो,
घमंड में अपने बहुत इतराते हैं..!

जब देखते हैं हौंसला हमारा,
डर के मारे वो यूँ घबराते हैं..!

दर्द को अपने जब छिपा न सकते,
एक आस में सम्मुख हमारे कराहते हैं..!

©SHIVA KANT
  #Mohabatein