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तुमसे एक ही बात कितनी बार करता मैं अब जब पूरी तरह

तुमसे एक ही बात कितनी बार करता मैं
अब जब पूरी तरह रुख मोड़ चुकी हो तुम मेरा अस्तित्व पूरी तरह से झिंझोड़ चुकी हो तुम
तो चलते चलते क्यूँ रुका करती हो और फिर पलट कर क्यूँ देखा करती हो
जैसे तुम्हारे पास मेरे लिए कुछ भी बचा नहीं है मेरे पास भी अब तुम्हारे लिए कुछ नया नहीं है
तुम जब समझना नहीं चाहतीं थीं तो  कहाँ तक इज़हार करता मैं
तुमसे एक ही बात कितनी बार करता मैं (1) 
तुमने अपनी मजबूरियों में अपनी गलतियाँ छिपा लीं बहुत आसानी से मुझसे दूरियाँ बढ़ा लीं
देखो इसके बाद भी मैं तुम्हारा साथ निभा रहा हूँ तुम्हारी ही तरह मैं भी अब दूरियाँ बढ़ा रहा हूँ
तुम्हें अब शिकायत नहीं होनी चाहिए मुझसे मगर कभी फुर्सत मिले तो सवाल पूछना खुदसे
जब तुम रुकना ही नहीं चाहतीं थीं तो कहाँ तक इंतजार करता मैं
तुमसे एक ही बात कितनी बार करता मैं (2) 
और अब जब हमारे तुम्हारे बीच में कुछ भी नहीं हैं सुख तो नहीं कहूँगा मगर अब कोई दुखः भी नहीं है
हालांकि कई बार मन ने मुझे, मैंने अपने मन को मारा मुझे गर्व है कि मैंने किसी के प्रेम में जीवन गुज़ारा
मैंने तलवार उठाकर के किसी का खून नहीं बहाया मैंने तो मन मंदिर में तुम्हें बिठाकर प्रेम गीत ही गाया
तुम्हें मुझ पर यकीन होना चाहिए था कुछ अगर बिगड़ता तो फिर सँवार देता मैं
मगर, 
तुमसे एक ही बात कितनी बार करता मैं....

©Ks Vishal ek hi sawal kitni baar karta mai 

#patience
तुमसे एक ही बात कितनी बार करता मैं
अब जब पूरी तरह रुख मोड़ चुकी हो तुम मेरा अस्तित्व पूरी तरह से झिंझोड़ चुकी हो तुम
तो चलते चलते क्यूँ रुका करती हो और फिर पलट कर क्यूँ देखा करती हो
जैसे तुम्हारे पास मेरे लिए कुछ भी बचा नहीं है मेरे पास भी अब तुम्हारे लिए कुछ नया नहीं है
तुम जब समझना नहीं चाहतीं थीं तो  कहाँ तक इज़हार करता मैं
तुमसे एक ही बात कितनी बार करता मैं (1) 
तुमने अपनी मजबूरियों में अपनी गलतियाँ छिपा लीं बहुत आसानी से मुझसे दूरियाँ बढ़ा लीं
देखो इसके बाद भी मैं तुम्हारा साथ निभा रहा हूँ तुम्हारी ही तरह मैं भी अब दूरियाँ बढ़ा रहा हूँ
तुम्हें अब शिकायत नहीं होनी चाहिए मुझसे मगर कभी फुर्सत मिले तो सवाल पूछना खुदसे
जब तुम रुकना ही नहीं चाहतीं थीं तो कहाँ तक इंतजार करता मैं
तुमसे एक ही बात कितनी बार करता मैं (2) 
और अब जब हमारे तुम्हारे बीच में कुछ भी नहीं हैं सुख तो नहीं कहूँगा मगर अब कोई दुखः भी नहीं है
हालांकि कई बार मन ने मुझे, मैंने अपने मन को मारा मुझे गर्व है कि मैंने किसी के प्रेम में जीवन गुज़ारा
मैंने तलवार उठाकर के किसी का खून नहीं बहाया मैंने तो मन मंदिर में तुम्हें बिठाकर प्रेम गीत ही गाया
तुम्हें मुझ पर यकीन होना चाहिए था कुछ अगर बिगड़ता तो फिर सँवार देता मैं
मगर, 
तुमसे एक ही बात कितनी बार करता मैं....

©Ks Vishal ek hi sawal kitni baar karta mai 

#patience
vishalmaurya4538

Ks Vishal

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