वो अल्हड़ पन वो मस्ती वो बचपन की बस्ती किताबों मे खोई सी थी वो मासूम सी हस्ती क्या हसीन थी वो यादों की कश्ती........ वो स्कूल न जाने का बहाना बनाना आते ही बस्ता फेंक खेलने चले जाना वो गली मे गेंद बल्ला बजाना दोस्तों के साथ बैठ घंटो गप्पे लड़ाना गजब थी मेरी भी हस्ती........ वो कहानियों की किताबों मे खो जाना खाने के लिए माँ का आवाज देकर बुलाना वो पापा के साथ संडे को घूमने जाना गलतियों पर माँ बाबा से डाँट खाना छोटे से चेहरे पर मुस्कान थी जचती........ वो गर्मीयों मे छतों पर सोना तपती छत को ठंडे पानी से धोना वो टीवी ही था हमारा सामूहिक खिलौना जंगल बुक देखकर खुश होना न था जीवन का ये रोना धोना......... वो न अब ये जमाना रहा न बचपन अब पुराना रहा वो सिर्फ अब कल की बातें रही न अब मासुमियत भरी शरारतें कहीं लगता है दुनिया बदल गई....... वो बालक अब न तो गलियों मे दिख रहा है बचपन तकनीक की दुनिया मे पिस रहा है कौन अब उनको वापस लौटाए शायद वो दिन वापस फिर न आए कहीं पारिवारिक मूल्य न खो जाए......... #निखिल_कुमार_अंजान...... #nojoto #निखिल_कुमार_अंजान...... #मेरी_डायरी....