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चले जा रहा हूँ मंज़िल-ए-ज़ानिब, मसाफ़त का सिलसिला चल

चले जा रहा हूँ मंज़िल-ए-ज़ानिब,
मसाफ़त का सिलसिला चलता रहे..।

चलता रहा गर्द-ए-राह मे,
सर-ब-सर नए नए  मुसाफ़िर मिलते रहे..।


ठहर जा मंज़िल रास्ते ख़त्म हो गए है अब,
राहों के शौक़ में एक ग़लत क़दम उम्र भर ख़लते रहे।

फ़कत कुछ तमन्नाओं की ख़ातिर,
नाज़ायज़ किरदारों में ढ़लते रहे।
  🎀 Challenge-229 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है।

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है।

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 50 शब्दों में अपनी रचना लिखिए।
चले जा रहा हूँ मंज़िल-ए-ज़ानिब,
मसाफ़त का सिलसिला चलता रहे..।

चलता रहा गर्द-ए-राह मे,
सर-ब-सर नए नए  मुसाफ़िर मिलते रहे..।


ठहर जा मंज़िल रास्ते ख़त्म हो गए है अब,
राहों के शौक़ में एक ग़लत क़दम उम्र भर ख़लते रहे।

फ़कत कुछ तमन्नाओं की ख़ातिर,
नाज़ायज़ किरदारों में ढ़लते रहे।
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