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first read caption... कई बार ऐसे शक्स से हम संवा

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कई बार ऐसे शक्स से हम संवाद कर रहे होते है, जिससे बातों ही बातों में ऐसी बात हो जाती है की उस संवाद को कभी पूर्ण नहीं किया जा सकता है, और आधे अधूरे संवाद में ही हम ख़ामोश हो जाते है। 

सोचती हूँ कभी कभी क्या ऐसा संवाद कभी पूर्ण हो भी सकता है? सोचती हूँ क्या उस शक्स के गहराइयों को कभी माप सकते है!! 

कितनी अजीब बात है ना हर शक्स किसी ना किसी का है, पर जो जिसका है वो उसी का नहीं है, और जो एकदूसरे का है वो भी एकदूसरे से दूर है, चाहे उस दूरी की वजह कुछ भी हो!!••••••••••
©️अनुराधा सक्सेना मैं:   “कैसे हो?”

वो:   “जिंदगी में गम है, गम में दर्द है, दर्द में मजा है और मजे में हम हैं।”

मैं:   “कैसा ग़म”

वो:   “ऐसे ही... तुम कैसी हो?”
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कई बार ऐसे शक्स से हम संवाद कर रहे होते है, जिससे बातों ही बातों में ऐसी बात हो जाती है की उस संवाद को कभी पूर्ण नहीं किया जा सकता है, और आधे अधूरे संवाद में ही हम ख़ामोश हो जाते है। 

सोचती हूँ कभी कभी क्या ऐसा संवाद कभी पूर्ण हो भी सकता है? सोचती हूँ क्या उस शक्स के गहराइयों को कभी माप सकते है!! 

कितनी अजीब बात है ना हर शक्स किसी ना किसी का है, पर जो जिसका है वो उसी का नहीं है, और जो एकदूसरे का है वो भी एकदूसरे से दूर है, चाहे उस दूरी की वजह कुछ भी हो!!••••••••••
©️अनुराधा सक्सेना मैं:   “कैसे हो?”

वो:   “जिंदगी में गम है, गम में दर्द है, दर्द में मजा है और मजे में हम हैं।”

मैं:   “कैसा ग़म”

वो:   “ऐसे ही... तुम कैसी हो?”