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फिर ग़मों की शाम है और दर्द है रूस्वाई का दूर तक

फिर ग़मों की शाम है और दर्द है रूस्वाई का 
दूर तक छाया हुआ है मंज़र  मेरी तन्हाई का 

ता- हद नज़र आता है चेहरा मुझे सौदाई का 
ये क़ुसूर उसका नहीं  यह दोष है बीनाई का 

याद रखता नहीं दिल याद रखने से भी कुछ 
पर  भुला पाता नहीं अक्स  उस हरजाई का 

ये शब- ए- हिज्र फिर उस में जवाँ ये हसरतें 
और ज़ख़्मों पे नमक-सा शोर ये शहनाई का 

एक हम थे इश्क़ में  जग छोड़ने पर आमादा 
एक उन्हें खाता रहा डर ज़ाबिता-आबाई का

©Parastish
  बीनाई = दृष्टि, नज़र
ज़ाबिता-आबाई = ख़ानदानी रीत/ रिवाज़

#parastish #ghazal #Poetry #Shayari
pooja7092330500628

Parastish

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Super Creator

बीनाई = दृष्टि, नज़र ज़ाबिता-आबाई = ख़ानदानी रीत/ रिवाज़ #parastish #ghazal Poetry #Shayari

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