(अनुशीर्षक में) सितंबर इस तरह गुज़रा, कि काम के बोझ का पहनना पडा़ मुझे सेहरा। गणपति जी के आगमन से घर में रौनक आई, परंतु मेहमाननवाजी़ करते-करते मुझ पे शामत बन आई। गणपति के विसर्जन पर आँखे भर आई, अगले बरस फिर आएँगे,इस बात ने समझ सहलाई। रोज़ खाने मिलते भिन्न प्रकार के भोग, कभी लड्डू,कभी मोदक तो कभी होता पुरणपोली का योग।