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देख रहा था अपलक बैठे,क्यों वो खारे पानी को। जाने ढ

देख रहा था अपलक बैठे,क्यों वो खारे पानी को।
जाने ढूँढ रहा था वो क्या,शायद खोए निशानी को।।
नहीं किसी ने टोका उसको,खोजे क्या वो पानी में।
ऐसी दिखती काया उसकी, बूढ़ा लगे जवानी में।।

©Bharat Bhushan pathak
  #landscape 
देख रहा था अपलक बैठे,क्यों वो खारे पानी को।
जाने ढूँढ रहा था वो क्या,शायद खोए निशानी को।।
नहीं किसी ने टोका उसको,खोजे क्या वो पानी में।
ऐसी दिखती काया उसकी, बूढ़ा लगे जवानी में।।

#landscape देख रहा था अपलक बैठे,क्यों वो खारे पानी को। जाने ढूँढ रहा था वो क्या,शायद खोए निशानी को।। नहीं किसी ने टोका उसको,खोजे क्या वो पानी में। ऐसी दिखती काया उसकी, बूढ़ा लगे जवानी में।। #Poetry

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