आज बस यह तस्वीर बोलेगी और मैं मौन रहूंगा। आजाद मुल्क में रहकर भी मैं खुद को एक गुलाम कहूंगा।। कोई कह दो उन सियासतदानों से के नहीं चाहिए हमें ये आजादी। जहां जीने का हक ना हो जनता को फिर किस नाम की आजादी।। इस दौर से सही था वो दौर गुलामी का आसान कितना तब मरना था। अगर आजादी में भी तिल तिल कर मरना है फिर किस काम की आजादी।। उड़ीसा से आई यह तस्वीर हमारी व्यवस्था पर एक सवाल है कि क्या सिर्फ देश ही आजाद हुआ है, जो जनता आज भी गरीबी वो अभाव की जिंदगी जी रही है और हमारे राजनेता व नौकरशाह दिनों दिन अरबों खरबोंपती बनते जा रहे हैं...