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Title- (जिंदगी के कुछ पल ऐसे भी) कैसे संभालु खुद

Title- (जिंदगी के कुछ पल ऐसे भी) 
कैसे संभालु खुद को मै ओ यारा।
तिल तिल जो हर पल मर रही हु।
उसकी यादों के बोझ दिल पे लेके।
मै तो हर पल हजार मौत मर रही हु।
दिल कि बेचैनी कि क्या हद बताऊ तुम्है।
 हर पल में तो बेचैनी मे जल रही हु।
 क्या जलाएगी वो आतिश मुझे जमाने कि।
 में तो उस आतिश से ही बनी हु।
 आँसु जो मेरे किसी के हमदम ना बने।
 सोच थी मजाके महफ़िल ना बन जाऊ। 
तन्हा एक कोहने मे दिले जज्बात बहा देते है। 
डर है जमाने की नजर मे कातिल ना बन जाऊ।
बोझ लेकर इस गम का जिंदगी कट रही है।
 हर दिन हर पल बस जिंदगी मेरी बाते कर रही है।
 मौत के वक़्त का तो पता नही मुझे। 
 जिंदगी भी मेरी दोस्त तो नही । 
दोस्ती पर बी क्या ही ऐतबार करना। 
इस जमाने मे तो वो भी पाक मुकम्मल नही। 
एक इल्तिजा उस खुदा से कर लेती हु।
 जिंदगी teri है तेरी ही रहेगी। 
मेरी गलतियों को माफ कर मुझे भी कुछ आमिल बना दे।
बड़े महल नही चाहिए मुझे बस अपने घर मे छोटी सी जगह दे।
(By SABEENA)

©Sabeena
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